Thursday, December 10, 2009

जिवन की पुस्तक हैं आपका अवचेतन मन

आप अपने अवचेतन मन पर जो भी विचार,विश्वास,राय,सिद्धांत या मत लिखते हैं,उकेरते हैं,वे परिस्थितियों,स्थितियों और घटनाओं के रूप में प्रकट हो जाते हैं। आप भीतर जो लिखेंगे,बाहर भी आपको वही अनुभव होगा। आपके जिवन के दो पहलू हैं,यथार्थवादी और कल्पनावादी,द्र्श्य और अद्र्श्य,विचार और अभिव्यक्ति।

आपका विचार तंत्रिकीय आवेग के रूप में आपके सेरीब्रल काँरटेक्स में पहुँचता हैं,जो आपके चेतन तार्किक मन का अंग हैं। जब आपका चेतन या यथार्थवादी मस्तिष्क विचार को पूरी तरह स्वीकार कर लेता हैं,तो यह मस्तिष्क के दूसरे हिस्से तक पहुँचता हैं,जहॉ यह साकार हो जाता हैं और परिस्थिति का रूप ले लेता हैं।

आपका अवचेतन मन बहस नहीं कर सकता हैं।यह तो सिर्फ उसी पर अमल करता हैं,जो आपने इस पर लिखा हैं।यह आपके चेतन मन के निष्कर्षों या उसके फैसले को अन्तिम मान लेता हैं।इसलिए आप हमेशा अपने जिवन की पुस्तक पर लिख रहे हैं,क्योंकि आपके विचार ही अंततः आपके अनुभव बन जाते हैं। अमेरिकी दार्श्निक राल्फ वाल्डो इमर्सन ने कहा था,"मनुष्य वही बन जाता हैं,जो वह दिन भर सोचता है।"